Bhagvad-Gita
Bhagvad Gita – Quote – 2-3 – Do not get inferior impotence
क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्वय्युप्पध्यते।
क्षुद्र्म हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप॥
इस श्लोक का भावार्थ – भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे पार्थ। अपने अंदर हीन भावना से उत्तपन्न हुई इस नपुंसकता को प्राप्त मत होओ। यह तुम्हारे लिए शोभनीय नहीं है। तुम तो शत्रुओं का दमन करने में सक्षम हो। अपने हृदय की दुर्बलता का त्याग कर युद्ध के लिए खड़े हो जाओ।
श्रीमदभगवद्गीता में मुख्य रूप से पार्थ शब्द का प्रयोग हुआ है जो भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन के लिए प्रयोग किया गया है।
Bhagvad-Gita – हमारे जीवन में भगवद गीता के श्लोक का महत्व
हमारे दैनिक जीवन से पार्थ और कृष्ण शब्द का गहरा नाता है क्योंकि हमारे जीवन में पार्थ और कोई नहीं हम खुद हैं व कृष्ण हमारी अंतर आत्मा है।
जब हम किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाते है कि हमें कोई निर्णय लेने में कठिनाई का अनुभव होता है। उस समय हमारे मन में एक डर का समावेश हो जाता है। हमारा आत्मबल कमजोर पड़ जाता है। हमें लगने लगता है कि सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर चले जाएँ।
तब हमारी कृष्ण रूपी अंतर आत्मा हमें एक संदेश देती है। हमारा मनोबल बढ़ाती है।
और कहती है कि Continue – Page (2)
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