जिनके पास फीस भरने को 300 रुपए नहीं थे, उन्हें मिला पद्मश्री

उन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि वो कभी आँखों के एक डॉक्टर बन जाएँगे।

Prof-Jagat-Ram – डॉक्टर बनने की प्रेरणा

इनके दादा-दादी की दोनों आँखें मोतियाबिंद के कारण खराब हो चुकी थीं और वो बिना किसी की मदद के कोई काम नहीं कर पाते थे। इसी से ही इन्हें आँखों का डॉक्टर बनने की प्रेरणा मिली।

शुभचिंतकों व मित्रों ने उनके भीतर छिपी प्रतिभा को देख कर उन्हें डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित किया लेकिन जब फीस भरने में दिक्कत आती तो उन्हें लगता था कि डॉक्टर बनना इतना आसान नहीं है।

लेकिन मित्रगण के लगातार दबाव से उनके अंदर उम्मीद जगने लगी कि वो डॉक्टर बन सकते हैं।

इसी के चलते उन्होने 1974 से 1979 तक एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की।

जब 1979 में एमएस करने के लिए पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च  (पीजीआई) चंडीगढ़ पहुंचे तो वहाँ की चमक दमक देख कर उन्हें लगा कि [Continued…..3]

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