जीवन दिया है। बस हमें तो आगे बढ़ना ही है। व्यर्थ की उलझनों में उलझ कर अपनी प्रगति को रोकना नहीं है।
हम जितना विनम्र होते चले जाएंगे, उतना ही हमारी सफलता की राह मजबूत होती चली जाएगी।
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खत्री जी। शुभ संध्या।
बड़े ही अच्छे विषय पर आपने विचार व्यक्त किये हैं। वास्तव में इंसान अपने अहम् के मद में इतना अँधा हो गया है कि वह प्रत्येक सामने वाले व्यक्ति को अपने से तुच्छ ही समझता है, फिर चाहे पद हो या पैसा ।
एक बार सोच कर देखे क्या लाये थे और क्या लेकर जाओगे। एक आप का व्यवहार और दो मीठे बोल ही तो हैं जो आपकी याद रुपी आप छोड़ जाते हैं।
विनयशीलता और सद्कर्म मनुष्य के सबसे बड़े गहने है और वही आपके बाद इस मायावी संसार में रह जाते हैं।
आदरणीय वीरेंद्र जी। धन्यवाद।