क्या चिंता जरूरी है या चिंतन

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पहला यह कि जब भी आप अपने कार्यालय में कार्य कर रहें हो तो अपने घर को भूल जाइये. घर में क्‍या हो रहा है, क्‍या चल रहा है, इसकी बिलकुल भी परवाह मत कीजिए.

क्‍योंकि हर पल चिन्‍ता करने से या घर की परेशानियों के बारे में सोचने से समाधान नहीं मिल पायेगा.  बल्कि बैठे-‍बिठाये अपना काम गलत कर बैठोगे.

दूसरा जब आप घर पर हों तो अपने कार्यालय भूल जाइये. अर्थात् कार्यालय को कार्यालय में ही छोड कर आइये. उसके विषय में या उससे सम्‍बन्धित किसी भी बात की चर्चा अपने घर में मत कीजिए.

घर में केवल अपने परिवार के साथ अपने परिवार के बारे में ही चर्चा कीजिए तथा अपने परिवारजन को समय दीजिए. अपने परिवार जन को सुनिये. आपकी आधी से अधिक समस्‍याओं का समाधान तो बातों बातों में ही हो जायेगा.

worry-think – कभी समाप्‍त नहीं होती घर की समस्‍याएं

सदैव एक बात का ध्‍यान रखिये कि न तो कभी घर की समस्‍याएं समाप्‍त होंगी और न ही कार्यालय के काम. अतः समय सीमाओं का ध्‍यान रखते हुए अपनी अपनी जगह दोनों काम करिये.

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मैंने अक्‍सर देखा है कि व्‍यर्थ की वाहवाही लूटने के लिए लोग अपने आप को बढा चढा कर पेश तो कर देते हैं किन्‍तु जब परिणाम देने का वक्‍त आता है तो वो केवल चिन्‍ता में ही…. Continued – Page (6)

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